एक बार एक जेल में कुछ आदमियों के साथ एक औरत भी कैद थी, और वो आदमी उस औरत को छेड़ रहे थे।
दूसरी ओर जेल में दो शरीफ कैदी कैद थे, उन दोनों में से एक मुस्लिम था, और दूसरा आदमी हिन्दू था।
मुस्लिम बड़े अदब से अपनी नवाज पढ़ रहा था, और हिन्दू शांति से प्राथना कर रहा था।
पास बैठ पुलिस वाले ने जब कैदियों को उस औरत को छेड़ते देखा, तो सोचा –
इस औरत को इस दूसरी जेल में डाल देता हुँ, ये दोनों कैदी समझदार हैं, इस औरत को कुछ नहीं कहेंगे।
ऐसा सोचकर पुलिस वाले ने उस महिला को उन दोनों आदमीओ वाली जेल में डाल दिया।
औरत के अंदर आते ही,
हिन्दू ने मुस्लिम से कहा –
उठो भईया – तपस्या का फल मिल गया।
दूसरी ओर जेल में दो शरीफ कैदी कैद थे, उन दोनों में से एक मुस्लिम था, और दूसरा आदमी हिन्दू था।
मुस्लिम बड़े अदब से अपनी नवाज पढ़ रहा था, और हिन्दू शांति से प्राथना कर रहा था।
पास बैठ पुलिस वाले ने जब कैदियों को उस औरत को छेड़ते देखा, तो सोचा –
इस औरत को इस दूसरी जेल में डाल देता हुँ, ये दोनों कैदी समझदार हैं, इस औरत को कुछ नहीं कहेंगे।
ऐसा सोचकर पुलिस वाले ने उस महिला को उन दोनों आदमीओ वाली जेल में डाल दिया।
औरत के अंदर आते ही,
हिन्दू ने मुस्लिम से कहा –
उठो भईया – तपस्या का फल मिल गया।
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