Tuesday 31 October 2017

अब तो आ जाइये...




शाम है बुझी बुझी वक्त है खफा खफा, 
कुछ हंसीं यादें हैं कुछ भरी सी आँखें हैं, 
कह रही है मेरी ये तरसती नजर, 
अब तो आ जाइये अब न तड़पाइये। 

हम ठहर भी जायेंगे राह-ए-जिंदगी में 
तुम जो पास आने का इशारा करो, 
मुँह को फेरे हुए मेरे तकदीर सी, 
यूँ न चले जाइये अब तो आ जाइये।



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